Thursday, 14 July 2016

14 JUL 2016 DEVSHAYANI/PADMA/ASHADI EKADASHI

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी: श्रीविष्णु के शयन का दिन

पं. भानुप्रतापनारायण मिश्रFirst Published:11-07-2016 09:34:52 PMLast Updated:11-07-2016 09:34:52 PM
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी: श्रीविष्णु के शयन का दिन
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मा, आषाढ़ी, हरिशयनी और देवशयनी एकादशी भी कहा जाता है। चातुर्मास भी इसी दिन से शुरू होता है। गणेश जी और श्री हरि सहित अन्य देवी-देवताओं की साधना करने वाले संन्यासियों को शास्त्रों का निर्देश है कि चातुर्मास के चार महीनों- आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक वे समाज को पुरुषार्थ चतुष्टय (धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष) का ज्ञान प्रदान करें। प्राचीन काल से चल रही परंपरा का अनुकरण हमारे साधु-संत आज भी करते हैं। कलियुग में नाम चर्चा और नित्य नाम स्मरण सांसारिक इच्छाओं को पूरा करने के साथ-साथ मोक्षदायक फल प्रदान करता है।
इस एकादशी से ही जीवन के शुभ कर्म- यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, दीक्षा-ग्रहण, यज्ञ, गृहप्रवेश आदि सभी स्थगित हो जाते हैं। देखा जाए तो इन चार महीनों में होने वाली बरसात के कारण शरीर कमजोर हो जाता है। मौसम को ध्यान में रख कर शरीर को अध्यात्म द्वारा संभालें, ऐसा निर्देश नारायण करते हैं। आषाढ़ शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि को शंखासुर दैत्य मारा गया था। तब नारायण ने चार मास तक क्षीर सागर में शयन किया।
देवशयनी एकादशी व्रत में घर में अपनी आर्थिक स्थिति अनुसार भगवान विष्णु की सोने, चांदी, तांबे अथवा पीतल की मूर्ति की स्थापना करें। षोडशोपचार सहित उनका पूजन करें। भगवान को पीतांबर आदि वस्त्र पहनाएं। आरती कर सफेद चादर से ढके गद्दे-तकिए वाले पलंग पर विष्णुजी को शयन कराएं। व्यक्ति को इन चार महीनों के लिए अपनी रुचि-कामना अनुसार कुछ एक पदार्थों का त्याग करना चाहिए। प्रभु शयन के दिनों में पलंग पर सोना, झूठ बोलना, मांस, शहद और दूसरे का दिया भोजन, मूली एवं बैंगन आदि का भी त्याग कर देना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन भी करना चाहिए।
कथा है कि नारदजी के प्रश्न पूछने पर ब्रह्माजी ने इस एकादशी के विषय में उन्हें बताया। उन्होंने बताया कि सतयुग में मान्धाता नामक एक चक्रवर्ती सम्राट के राज्य में भयंकर अकाल पड़ गया। तीन वर्ष तक वर्षा नहीं हुई। इस अकाल से प्रजा परेशान हो गई। जनता ने राजा से दुख दूर करने को कहा। राजा सेना लेकर जंगल गए, जहां उनकी भेंट अंगिरा ऋषि से हुई। उनके कष्ट को दूर करने के लिए ऋषि ने कहा,'आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करें।' राजा ने व्रत किया और बरसात हुई। पूरा राज्य फिर से धन-धान्य से समृद्ध हो गया।

Devshayani Ekadashi 2016 - July 15 (Friday)

Devshayani Ekadashi is also known by the name Ashadh Shukla Paksha Ekadashi, Ashadi Ekadashi, Hari Shayani Ekadashi, Maha-Ekadashi and Prathama Ekadashi. Chaturmas, the holy period of four months when Lord Vishnu goes to sleep usually begins after Devshayani Ekadashi.

Devshayani Ekadashi usually begins days after the Puri Rath Yatra. Padarpur Yatra in Maharashtra too concludes on this day. Pilgrims in Maharashtra observe Devshayani Ekadashi with religious fervor. Main celebration occurs in Lord Vithal temple. Lord Vital is considered an incarnation of Lord Krishna.

Initiation of Chaturmas Period

Devshayani Ekadashi occurs on a day prior to the beginning of the Chaturmas period. Chaturmas as the name signifies four months with chatur referring to four and mas to months. The four months that makes up the chaturmas period include the months of Ashadh, Shravan, Bhadarva ad Aaso. During the chaturmas period, the devotees are expected to observe penance, carry on devotional activities and have restriction over their senses. Festivities and celebrations make these chaturmas months lively and active.

Historic Significance of Devshayani Ekadashi

Religious scriptures have it that the significance of Devshayani Ekadashi was first explained by Lord Krishna to Yudhisthira. A King by the name of Mandata had to face drought for three years in a row in his kingdom. This created a precarious condition and the residents of the kingdom had to face hard times. Rivers dried out and man and animal suffered immensely. The King saddened by the happenings in his kingdom embarked on a journey to seek some solution for his people.

The King wished to appease the Rain Gods and met Rishi Angiras to seek a solution. The King was supposed to keep a fast on Devshayani Ekadashi alongwith the entire population of the kingdom as advised by the rishi. Lord Vishnu blessed the kingdom and heavy rains occurred following the religious devotion shown by the King and his peasants. With rains came prosperity and the people lived happily thereafter.

It became a ritual since then to fast on this auspicious day as this brought prosperity and luck to those who showed religious devotion. 

Devshayani Ekadashi Celebrations

Devotees get divine blessings of Lord Vishnu on Devshayani Ekadashi if they observe the day with utmost devotion. An ardent devotee is able to attain salvation if fasting is done in true earnest. Fasting on Devshayani Ekadashi helps devotees fulfil their wishes and help them attain freedom from any of the sins they have committed in the past.

Fasting on Devshayani Ekadashi also helps one strengthen the self control and become emotionally stable. Many devotees of Vishnu fast for 2 consecutive days. However, the fasting on the second day is suggested only for those who wish to attain Sanyas (salvation) in the long run. Widows and those looking forward to attaining Moksha too can go for the second day fast in Devshayani Ekadashi.

देवशयनी एकादशी

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
देवशयनी एकादशी
आधिकारिक नामदेवशयनी एकादशी व्रत
अनुयायीहिन्दूभारतीय, भारतीय प्रवासी
उद्देश्यसर्वकामना पूर्ति
तिथिआषाढ़ के शुक्ल पक्ष की एकादशी
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर २६ हो जाती है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। कहीं-कहीं इस तिथि को 'पद्मनाभा' भी कहते हैं। सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये एकादशी आती है। इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ माना जाता है। इस दिन से भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और फिर लगभग चार माह बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर उन्हें उठाया जाता है। उस दिन को देवोत्थानी एकादशी कहा जाता है। इस बीच के अंतराल को ही चातुर्मास कहा गया है।

पौराणिक संदर्भ[संपादित करें]

पुराणों में वर्णन आता है कि भगवान विष्णु इस दिन से चार मासपर्यंत (चातुर्मास) पाताल में राजा बलि के द्वार पर निवास करके कार्तिक शुक्ल एकादशी को लौटते हैं। इसी प्रयोजन से इस दिन को 'देवशयनी' तथा कार्तिकशुक्ल एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी कहते हैं। इस काल में यज्ञोपवीत संस्कारविवाहदीक्षाग्रहणयज्ञग्रहप्रवेश, गोदान, प्रतिष्ठा एवं जितने भी शुभ कर्म है, वे सभी त्याज्य होते हैं। भविष्य पुराणपद्म पुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार हरिशयन को योगनिद्रा कहा गया है।
संस्कृत में धार्मिक साहित्यानुसार हरि शब्द सूर्यचन्द्रमावायुविष्णु आदि अनेक अर्थो में प्रयुक्त है। हरिशयन का तात्पर्य इन चार माह में बादल और वर्षा के कारण सूर्य-चन्द्रमा का तेज क्षीण हो जाना उनके शयन का ही द्योतक होता है। इस समय में पित्त स्वरूप अग्नि की गति शांत हो जाने के कारण शरीरगत शक्ति क्षीण या सो जाती है। आधुनिक युग में वैज्ञानिकों ने भी खोजा है कि कि चातुर्मास्य में (मुख्यतः वर्षा ऋतु में) विविध प्रकार के कीटाणु अर्थात सूक्ष्म रोग जंतु उत्पन्न हो जाते हैं, जल की बहुलता और सूर्य-तेज का भूमि पर अति अल्प प्राप्त होना ही इनका कारण है।
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि को शंखासुर दैत्य मारा गया। अत: उसी दिन से आरम्भ करके भगवान चार मास तक क्षीर समुद्र में शयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। पुराण के अनुसार यह भी कहा गया है कि भगवान हरि ने वामन रूप में दैत्य बलि के यज्ञ में तीन पग दान के रूप में मांगे। भगवान ने पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया। अगले पग में सम्पूर्ण स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरे पग में बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए सिर पर पग रखने को कहा। इस प्रकार के दान से भगवान ने प्रसन्न होकर पाताल लोक का अधिपति बना दिया और कहा वर मांगो। बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप मेरे महल में नित्य रहें। बलि के बंधन में बंधा देख उनकी भार्या लक्ष्मी ने बलि को भाई बना लिया और भगवान से बलि को वचन से मुक्त करने का अनुरोध किया। तब इसी दिन से भगवान विष्णु जी द्वारा वर का पालन करते हुए तीनों देवता ४-४ माह सुतल में निवास करते हैं। विष्णु देवशयनी एकादशी से देवउठानी एकादशी तक, शिवजी महाशिवरात्रि तक और ब्रह्मा जी शिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक निवास करते हैं।[1]

विधि[संपादित करें]

देवशयनी एकादशी व्रतविधि एकादशी को प्रातःकाल उठें। इसके बाद घर की साफ-सफाई तथा नित्य कर्म से निवृत्त हो जाएँ। स्नान कर पवित्र जल का घर में छिड़काव करें। घर के पूजन स्थल अथवा किसी भी पवित्र स्थल पर प्रभु श्री हरि विष्णु की सोने, चाँदी, तांबे अथवा पीतल की मूर्ति की स्थापना करें। तत्पश्चात उसका षोड्शोपचार सहित पूजन करें। इसके बाद भगवान विष्णु को पीतांबर आदि से विभूषित करें। तत्पश्चात व्रत कथा सुननी चाहिए। इसके बाद आरती कर प्रसाद वितरण करें। अंत में सफेद चादर से ढँके गद्दे-तकिए वाले पलंग पर श्री विष्णु को शयन कराना चाहिए। व्यक्ति को इन चार महीनों के लिए अपनी रुचि अथवा अभीष्ट के अनुसार नित्य व्यवहार के पदार्थों का त्याग और ग्रहण करें।
ग्रहण करें
देह शुद्धि या सुंदरता के लिए परिमित प्रमाण के पंचगव्य का। वंश वृद्धि के लिए नियमित दूध का। सर्वपापक्षयपूर्वक सकल पुण्य फल प्राप्त होने के लिए एकमुक्त, नक्तव्रत, अयाचित भोजन या सर्वथा उपवास करने का व्रत ग्रहण करें।

त्यागें[संपादित करें]

आज के दिन किसका त्याग करें- मधुर स्वर के लिए गुड़ का। दीर्घायु अथवा पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति के लिए तेल का। शत्रुनाशादि के लिए कड़वे तेल का। सौभाग्य के लिए मीठे तेल का। स्वर्ग प्राप्ति के लिए पुष्पादि भोगों का। प्रभु शयन के दिनों में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य जहाँ तक हो सके न करें। पलंग पर सोना, भार्या का संग करना, झूठ बोलना, मांस, शहद और दूसरे का दिया दही-भात आदि का भोजन करना, मूली, पटोल एवं बैंगन आदि का भी त्याग कर देना चाहिए।

कथा[संपादित करें]

एक बार देवऋषि नारदजी ने ब्रह्माजी से इस एकादशी के विषय में जानने की उत्सुकता प्रकट की, तब ब्रह्माजी ने उन्हें बताया- सतयुग में मांधाता नामक एक चक्रवर्ती सम्राट राज्य करते थे। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। किंतु भविष्य में क्या हो जाए, यह कोई नहीं जानता। अतः वे भी इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनके राज्य में शीघ्र ही भयंकर अकाल पड़ने वाला है।
उनके राज्य में पूरे तीन वर्ष तक वर्षा न होने के कारण भयंकर अकाल पड़ा। इस दुर्भिक्ष (अकाल) से चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। धर्म पक्ष के यज्ञ, हवन, पिंडदान, कथा-व्रत आदि में कमी हो गई। जब मुसीबत पड़ी हो तो धार्मिक कार्यों में प्राणी की रुचि कहाँ रह जाती है। प्रजा ने राजा के पास जाकर अपनी वेदना की दुहाई दी।
राजा तो इस स्थिति को लेकर पहले से ही दुःखी थे। वे सोचने लगे कि आखिर मैंने ऐसा कौन- सा पाप-कर्म किया है, जिसका दंड मुझे इस रूप में मिल रहा है? फिर इस कष्ट से मुक्ति पाने का कोई साधन करने के उद्देश्य से राजा सेना को लेकर जंगल की ओर चल दिए। वहाँ विचरण करते-करते एक दिन वे ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुँचे और उन्हें साष्टांग प्रणाम किया। ऋषिवर ने आशीर्वचनोपरांत कुशल क्षेम पूछा। फिर जंगल में विचरने व अपने आश्रम में आने का प्रयोजन जानना चाहा।
तब राजा ने हाथ जोड़कर कहा- 'महात्मन्‌! सभी प्रकार से धर्म का पालन करता हुआ भी मैं अपने राज्य में दुर्भिक्ष का दृश्य देख रहा हूँ। आखिर किस कारण से ऐसा हो रहा है, कृपया इसका समाधान करें।' यह सुनकर महर्षि अंगिरा ने कहा- 'हे राजन! सब युगों से उत्तम यह सतयुग है। इसमें छोटे से पाप का भी बड़ा भयंकर दंड मिलता है।
इसमें धर्म अपने चारों चरणों में व्याप्त रहता है। ब्राह्मण के अतिरिक्त किसी अन्य जाति को तप करने का अधिकार नहीं है जबकि आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है। यही कारण है कि आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है। जब तक वह काल को प्राप्त नहीं होगा, तब तक यह दुर्भिक्ष शांत नहीं होगा। दुर्भिक्ष की शांति उसे मारने से ही संभव है।'
किंतु राजा का हृदय एक नरपराधशूद्र तपस्वी का शमन करने को तैयार नहीं हुआ। उन्होंने कहा- 'हे देव मैं उस निरपराध को मार दूँ, यह बात मेरा मन स्वीकार नहीं कर रहा है। कृपा करके आप कोई और उपाय बताएँ।' महर्षि अंगिरा ने बताया- 'आषाढ़ माह के शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत करें। इस व्रत के प्रभाव से अवश्य ही वर्षा होगी।'
राजा अपने राज्य की राजधानी लौट आए और चारों वर्णों सहित पद्मा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनके राज्य में मूसलधार वर्षा हुई और पूरा राज्य धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया।

व्रतफल[संपादित करें]

ब्रह्म वैवर्त पुराण में देवशयनी एकादशी के विशेष माहात्म्य का वर्णन किया गया है। इस व्रत से प्राणी की समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।[क्या ये तथ्य है या केवल एक राय है?] व्रती के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।[क्या ये तथ्य है या केवल एक राय है?] यदि व्रती चातुर्मास का पालन विधिपूर्वक करे तो महाफल प्राप्त होता है।[क्या ये तथ्य है या केवल एक राय है?]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. ऊपर जायें भगवान का शयन करना। हिन्दुस्तान लाइव। १६ जुलाई २०१०

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Web Title: ashad mass shukla paksha ekadashi

Friends, have you ever wondered what can be the meaning of Bhu-Vaikuntha-Adhipati?  What is the uniqueness of Pandharpur where millions of devotees arrive on feet every year? 
Pandharpur is the place where the supreme authority has taken incarnation with His main consort!
Here you will find the root cause of this unique journey and the uniqueness of Bhuvaikunth, the Pandharpur...
मित्रांनो, काय असेल अर्थ भूवैकुंठाधिपतिचा ? काय असेल पंढरपूरचे वैशिष्ठ्य, जिथे लाखो लोक दर वर्षी पायी येतात, जी 'वारी' या नावाने प्रसिद्ध आहे?
पंढरपूर हे असे स्थान आहे, जिथे परमेश्वर स्वत: आपल्या पत्नीसमवे
त सगुण रुपात आहेत!
इथे कळेल आपल्याला वारीचे कारण आणि 
वैशिष्ठ्य भूवैकुंठ पंढरपूरचे!
Vitthal                 &                  Rukmini


Story of  shree Vitthal-Rukmini

Once upon a time in 5th or 6th century there was a devotee of Lord Vishnu, called Pundalik. He was living with his wife and parents Janudev and Muktabai, in a dense forest called Dindirvan. 
Pundalik was a devoted son but soon after his marriage he began to ill-treat his parents. To escape from this misery, the parents decided to go on a pilgrimage to Kashi. When Pundalik's wife learnt about this, she also decided to go. She and her husband joined the same group of pilgrims on horseback. While the son and his wife rode on horseback, the old couple walked. Every evening when the party camped for the night, the son forced his parents to groom the horses and do other jobs. The poor parents cursed the day they decided to go on a pilgrimage.

Soon the party reached the ashrama of the great sage Kukkutswami. There they decided to spend a couple of nights. They were all tired and soon fell asleep-except Pundalik who could not sleep. Just before daybreak he saw a group of beautiful, young women, dressed in dirty clothes, enter the ashrama, clean the floor, fetch water and wash the swami's clothes. Then they entered the inner room of the ashrama, and came out in beautifully clean clothes and passing near Pundalik, they vanished.
Next night he saw the same sight again. Pundalik threw himself at their feet and begged them to tell who they were. They said they were Ganga, Yamuna and other holy rivers of India in which the Pilgrims bathed and washed off sins. Their clothes became dirty by the sins of the bathing pilgrims. "And because of your ill-treatment of your parents," they said, "You are the greatest sinner."

This brought about a complete change in him and he became the most devoted son. Now the parents' rode the horses while the son and his wife walked by their side. By their love and affection, the son and his wife urged the parents to give up the pilgrimage and return to Dindirvan.
One day it so happened that Lord Krishna, the King of Dwarka, while feeling lonely, was reminded of his early days in Mathura. He particularly remembered his sports with the milkmaids, the cowherd boys, and his love, Radha. Though she was dead, he longed to see her again. By his divine powers he brought her back to life and seated her by his side. Just then his queen, Rukmini, entered the room. When Radha did not rise to pay her respect, Rukmini left Dwarka in anger and hid herself in Dindirvan forest. Later, Lord Krishna set off in search of Rukmini. He first went to Mathura, then to Gokul. He met the milkmaids and cowherd boys. They too joined in the search. They went to Mount Govardhan in her search.

At last they reached the banks of the river Bhima or Chandrabhaga in the Deccan. Krishna left his companions at Goplapura, and he himself entered Dindirvan forest alone in search of her. At last he found her and managed to calm her. Krishna and Rukmini came to Pundalik's ashrama.
But at that time Pundalik was busy attending to his parents. Though he knew Lord Krishna had come to see him, he refused to pay his respect to the god before his duty towards his parents was done. He, however, threw a brick outside for lord Krishna to stand upon. Impressed by Pundalik's devotion to his parents, Lord Krishna did not mind the delay. Standing on the brick he waited for Pundalik. When Pundalik came out and begged God's pardon and requested Him to remain there for the devotees, Lord Krishna replied that far from being displeased, he was pleased with his love for his parents. Since then the Lord Krishna is present as Vithoba, Vitthal or God who stood upon a brick...
And here is the official website of Vithal Rukmini Temple -VitthalRukminiMandir.org

Significance of Ashadhi Ekadashi
Ashadhi Ekadashi is also known as Shayani Ekadashi (lit. "sleeping eleventh") or Maha-ekadashi (lit. "The great eleventh") or Prathama-ekadashi (lit. "The first eleventh") or Padma Ekadashi is the eleventh lunar day (Ekadashi) of the bright fortnight (Shukla paksha) of the Hindu month of Ashadha (June - July). Thus it is also known as Ashadhi. This holy day is of special significance to Vaishnavas, followers of Hindu preserver god Vishnu. On this day idols of Vishnu and Lakshmi are worshipped, the entire night is spent singing prayers, and devotees keep fast and take vows on this day, to be observed during the entire chaturmas, the holy four month period of rainy season. These may include, giving up a food item or fasting on every Ekadashi day.
It is believed that Vishnu falls asleep (called - Yoga-Nidra) in Ksheersagar - cosmic ocean of milk - on Shesha nāga, the cosmic serpent. Thus the day is also called Dev-Shayani Ekadashi (lit. "god-sleeping eleventh") or Hari-shayani Ekadashi (lit. "Vishnu-sleeping eleventh") or Shayana Ekadashi. Vishnu finally awakens from his slumber four months later on Prabodhini Ekadashi - eleventh day of bright fortnight in the Hindu month Kartik (October-November). This period is known as Chaturmas (lit. "four months") and coincides with the rainy season. Thus, Shayani Ekadashi is the beginning of Chaturmas. Devotees start observing the Chaturmas vrata (vow) to please Vishnu on this day.
A fast is observed on Shayani Ekadashi. The fast demands abstainance from all grains, beans, cereals, certain vegetables like onions and certain spices and all kinds of eggs and non-veg.
  कथा श्री विठ्ठल-रुक्मिणीची  
पूर्वी५व्या किंवा ६व्या शतकातपुंडलिक नावाचा विष्णुभक्त होऊन गेला.तोपत्नी  आई-वडिल मुक्ताबाई आणि जानुदेव यांच्या बरोबर दिंडीरवननावाच्या जंगलात रहात होतापुंडलिक हा सत्गुणी पुत्र होतापण त्याच्यालग्नानंतर तो आपल्या आई-वडिलांना वाईट वागणूक देऊ लागलायावागणुकीला कंटाळून ते काशीला जाण्यासाठी निघालेहे जेव्हा त्याच्या पत्नीलासमजलेतेव्हा तीही तिकडे जाण्यासाठी निघालीती पतीसमवेतघोड्यावरते आई-वडिल ज्या समूहाबरोबर जात होतेतेथे पोहोचलेवाटेत ते एकाआश्रमाजवळ पोहोचलेजो 'कुक्कुटस्वामीं'चा होतातेथे त्या सर्वानी एक-दोनदिवस थांबण्याचा निर्णय घेतला.
त्या रात्री सारे झोपी गेलेपण पुंडलिकाला झोप लागेनापहाटे त्यालाअस्वच्छ वस्त्रातील काही तरुण स्त्रीया आश्रमात येताना दिसल्यात्यांनीआश्रम स्वच्छ केलापाणी आणूनस्वामिंचे कपडे धुतलेआणि त्या बाहेरआल्या  व पुंडलिकाजवळून जाऊन त्या अदृश्य झाल्यापुढील पहाटेही त्यालातेच दिसलेपुंडलिकाने त्यांच्या पायाशी जाऊन त्या कोण आहेत हेसांगण्याची विनंती केलीत्या म्हणाल्याकी त्या गंगायमुना आणि इतर पवित्रनद्या आहेत जिथे भाविक आपली पापे धुतातत्यामुळेच होतात त्या अस्वच्छ. "आणि तू आई-वडिलांना वाईट वागणूक दिल्यानेमहापापी आहेस." असे त्याम्हणाल्या.
यामुळे त्याच्यात पूर्ण बदल झाला आणि तो चांगला  आज्ञार्थी पुत्र झालातो त्यांचा आदर राखू लागलातेव्हा त्याने आई-वडिलांना विनंती केलीकीयात्रा सोडून त्यांनी पुन्हा दिंडीरवनात यावे.
एके दिवशीद्वारकाधिश श्रीकृष्ण (भगवान श्री विष्णु) एकटे असतानात्यांना मथुरेतील दिवसांची आठवण होतेत्यांना आठवतात त्या गोप-गोपिकाआणि राधाजरी ती मृत होती तरीत्यांनी स्वतःच्या दिव्य शक्तींनी तिलापुन्हा जिवंत करून स्वतःजवळ स्थानापन्न केलेतेव्हाच रूक्मिणी कक्षातआलीआणि राधाने उभे  राहून त्यांचा निरादर केल्याने रूक्मिणीने रागानेद्वारका सोडली  दिंडीरवनात अज्ञातवासात आलीनंतर भगवान श्री विष्णुतिच्या शोधार्थ प्रथम मथुरा नंतर गोकूळला गेले, गोपाळांना भेटलेमगत्यांनीही शोध सुरू केलाते शोधार्थ गोवर्धन पर्वतावर गेले.
शेवटी ते भीमा (किंवा चंद्रभागानदीतिराजवळ आलेसोबत असलेल्यागोपाळांना 'गोपाळपूरयेथे सोडून स्वतः दिंडीरवन जंगलात तिच्या शोधार्थनिघालेआणि तिथे रूक्मिणी सापडल्यावरतिचा राग शांत केलानंतररूक्मिणीसह तेथेच असलेल्या पुंडलिकाच्या आश्रमात आले.
पण तेव्हा पुंडलिक आपल्या आई-वडिलांची सेवा करीत होताजरी त्यालामाहित झालेकी भगवान श्री विष्णु स्वतः भेटायला आले आहेततरी आई-वडिलांच्या सेवेसमोर त्याने तात्काळ भेटण्याचे नाकारून एक वीटत्यांच्याजवळ फेकलीत्यावर उभे राहण्यासाठीपुंडलिकाची आपल्या आई-वडिलांविषयीची श्रद्धा पाहून भगवान श्री विष्णुने विलंबाची पर्वा केली नाही.विटेवर उभे राहून पुंडलिकाची वाट पाहिलीनंतर पुंडलिकाने देवाची क्षमामागून अशी विनंती केली कीत्यांनी भक्तांसाठी तेथेच असावेआणि भगवान श्री विष्णुने तसे वरदान दिलेतेव्हापासून भगवान श्री विष्णु आहेत विठ्ठल याअवतारात! 

विठ्ठल म्हणजे असा जो विटेवर उभा आहे.                                   (विठ्ठल  -  विट + ठल (उभा ठाकणे) )
आणि हे आहे विठ्ठल-रूक्मिणी मंदिराचे अधिकृत संकेतस्थळ - विठ्ठल-रूक्मिणीमंदीर.org
आषाढी एकादशीचे महत्व 
आषाढ महिन्यातील (जून-जुलैशुक्ल/शुद्ध पक्षातील आकरावी तिथी हीप्रथमाएकादशी / महा एकादशी / देव-शयनी एकादशी म्हणून ओळखलीजातेहा मोठा पवित्र दिवस आहेया दिवशी उपवास केला जातोयादिवसापासून चातुरमास (चारमहिन्यांचा काळसुरू होतोतो कार्तिकीएकादशीला संपतो.
अशी मान्यता आहे की या दिवशी भगवान विष्णु हेक्षीरसागरात शेषनागावर,योगनिद्नेस जातातआणि योगनिद्नेतून बाहेर येतात ते कार्तिकी एकादशीला(प्रबोधिनी एकादशी). या काळात मांसाहार वर्ज्य केला जातो.

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Devshayani Ekadashi Vrat Katha - In Hindi - 15 July 2016 -Ashadha ...

ekadashi mahatmya parama adhikmaas lound shukla paksha vrat katha

https://www.youtube.com/watch?v=4vWQamB8YTw
Oct 12, 2014 - Uploaded by gayathri sanghi
This video has the mahatmya story of Ekadashi fast day. This story should be heard on Ekadashi fast day of ...

Padmini Ekadashi Vrat Katha in Hindi - 28 June Sunday पुरुषोतम ...

https://www.youtube.com/watch?v=u-85C28Fqv0

Jun 26, 2015 - Uploaded by Raj Rani
लौंदमास, मलमास, अधिमास या पुरुषोतम मास की शुक्ल पक्ष की पद्मिनी एकादशी 28/06/2015 - Padmini Ekadashi Vrat ...

Devotthan Ekadashi, Hari Prabodhini Ekadasi, प्रबोधिनी ...

https://www.youtube.com/watch?v=c2WJu0mZU6g

Nov 12, 2013 - Uploaded by Vaibhava Nath Sharma
कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी देवोत्थान, तुलसी ... शास्त्रों में वर्णित है कि आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की ...

Parama Harivallabha Ekadashi Importance, Puja Vidhi, Vrat Benefits ...

https://www.youtube.com/watch?v=RHXZqRjou6E
Dec 4, 2014 - Uploaded by Pooja Luthra
Parama Harivallabha Ekadashi Mahatamya, Puja Vidhi & Vrat Katha, How to observe Parama ...

Devshayani Ekadashi Importance, Puja Vidhi, Vrat Benefits, and Vrat ...

https://www.youtube.com/watch?v=P3AVRpc0E1k
Dec 3, 2014 - Uploaded by Pooja Luthra
Devshayani Ekadashi Mahatamya, Puja Vidhi & Vrat Katha, How to observe Devshayani Ekadashi ...

Kamada Ekadashi Vrat Katha 17th April 2016 Sunday in Hindi ...

https://www.youtube.com/watch?v=0zlYg6VjnbA
Mar 29, 2016 - Uploaded by Days and Festival
Kamada Ekadashi Vrat Katha 17th April 2016 Sunday in Hindi - कामदा ... आषाढ शुक्ल एकादशी को देव-शयन हो जाने के ...

Devshayani Ekadashi / Padma Ekadashi / Ashadi Ekadashi / Hari ...

https://www.youtube.com/watch?v=vAYkph14-2U

Jul 25, 2015 - Uploaded by Shyam Diwani
In Hindi - विष्णु शयन व्रत चातुर्मास्य व्रत / आषाढ़ शुक्ला पक्ष एकादशी देवशयानी एकादशी / पद्मा एकादशी / हरी ...

Prabodhini Ekadashi Vrat Katha 10th November 2016 Thursday in ...

https://www.youtube.com/watch?v=-vL5z6BIUf0

Nov 15, 2015 - Uploaded by Days and Festival
Prabodhini Ekadashi Vrat Katha 10th November 2016 Thursday in Hindi ... is the 11th lunar day (ekadashi ...

धर्म: होली में करें आंवले के वृक्ष की पूजा: AAJ TAK ...

aajtak.intoday.in › कार्यक्रम
Mar 11, 2014
फल्‍गुन मास के शुक्‍ल पक्ष की एकादशी को रंग भरी एकादशी कहा ... क्या है आषाढ़ की गुप्त नवरात्रि का राज?

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Devshayani Ekadashi 2016, Ashad Shukla Paksha Ekadashi 2016

Fasts and Festivals Dates in June 2016 | Fast and Festivals in 2016

astrobix.com/.../1009-Fasts_and_Festivals_Dates_in_June_2016__Fast_and_Festivals...

16th June, Bhadra till 09:55, Nirjala ekadashi fast, Jyeshtha Shukla Paksha ekadashi (11) ... AshadKrishna Paksha (Surya Uttar Dakshinayan) - June 2016 ...

Fasts and Festivals Dates in July 2016 Hindu Festivals 2016

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Ashad Shukla Paksha (Surya Uttar Dakshinayan) - July 2016 ... 1st July, Yogini Ekadashi Fast (Vaibhav), Ashad Krishna Paksha dwadashi (12). 2nd July ...

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Live हिन्दुस्तान - 3 days ago
आषाढ़ शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि को शंखासुर दैत्य मारा गया था।
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Shayani Ekadashi - Wikipedia, the free encyclopedia

https://en.wikipedia.org/wiki/Shayani_Ekadashi

Shayani Ekadashi (lit. "sleeping eleventh") or Maha-ekadashi (lit. "The great eleventh") or Prathama-ekadashi (lit. "The first eleventh") or Padma Ekadashi or Devshayani Ekadashi or Devpodhi Ekadashiis the eleventh lunar day (Ekadashi) of the bright fortnight (Shukla paksha) of ...

Ekadashi - Wikipedia, the free encyclopedia

https://en.wikipedia.org/wiki/Ekadashi

Ekadashi also spelled as Ekadasi, is the eleventh lunar day (tithi) of the shukla (bright) or krishna (dark) paksha ... Ashaad (आषाढ, July–August), Vaamana, Yogini Ekadashi · Shayani Ekadashi · Shraavana (श्रावण, August–September) ...

देवशयनी एकादशी - विकिपीडिया

https://hi.wikipedia.org/wiki/देवशयनी_एकादशी

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आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। कहीं-कहीं इस तिथि को 'पद्मनाभा' भी कहते हैं।

Paksha - Wikipedia, the free encyclopedia

https://en.wikipedia.org/wiki/Paksha

Jump to Shukla Paksha - Shukla paksha refers to the bright lunar fortnight or waxing moon in the Hindu calendar. Shukla (Sanskrit: शुक्ल) is Sanskrit ...

Ekadashi 2016 Dates - Ekadashi 2016 Vrat Dates

https://www.mykundali.com/festival/ekadashi/

Ekadashi fast comes twice in a month; it comes first in the duration of Shukla Paksha (bright lunar fortnight) and then in Krishna Paksha (dark lunar fortnight).

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Shukla Paksha Trayodashi. Nakshtra : Jyestha Yog : Brahm ... Shukla Paksha Chaturdashi. Nakshtra : Mool ... Shukla Paksha Ekadashi. Nakshtra : Vishakha

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